स्तवन

स्तवन

श्री अवंती पार्श्वनाथ स्तवन

आज सफल अवतार फली सहू आसजी,
परतिख देव जुहार्या जिणवर पासजी।
धर धन धूंनौं जूनौं तीरथ ए धरा,
परसिध सुंणीयै एहनी एम परम्परा।।१।।
मालव देस मझार उजेणी पुर मुढ़ा,
आर्य सुहस्ति आचारिज आया एकढ़ा।
भद्रा सावीय दीधसुठाम तिहां रही,
नलिनीगुल्म अध्ययन सिझाय करी सही।।२।।
सुत अयवंती सुकमाल अस्थ ए सांभली,
रमणि बत्तीस सुंआवी वादै मनरली।
जातीसमरण जांणि तिणे संजम धर्यो,
महाकाल समसाणों जाय काउसग कयौँ।।३।।
सबलैं कंटकरुधिर विलूयौं स्यालणी,
उपसम अनुभव आणि सही वेदन घणी।
नलिनीगुलम विमान सुखा मैं अवतयाँ,
कुलदीपक सुत तास प्रसाद तिहां कयौँ।।४।।
प्रतिमा थापी माहि अयवंती पासजी,
जिन महिमा बहुलोक हुआ जिनसासनी।
गरुओं जस अधिकार सुंणी जिन गेह रो,
सिवमतीये पिंडी थाप की यौसिवदेहरो।।५।।
कल्याणमंदिर काव्यकुमचंदै कीयौ,
पिंडी विकसी पास जिणेसर प्रगटीयो।
वारै विक्रम राय वड़ी सोभा वणी,
घणौं काल जिनधर्म प्रसिद्धि हई घणी।।६।।
यवन जार तिहां बिंब भंडार्या जतन सुं,
रागी कुंण कुंण राग करै नही रतनसुं।
हिव सतरै सै संवत वरसैं इगसठें,
प्रगट थया प्रभु पारसी वंद्या इगसठें,
प्रगट थया प्रभु पासजी वंद्या सारी पठें।७।।
उदय सकल सुख लखमी धन जीवित थयौ,
भेटया श्री भगवंत दुख दुरें गयौ।
लाख भांति श्री खरतरगच्छ सोभा कही,
गणधर जिणचन्दसूरि जुहार्या गहगयी।।८।।

॥ इति श्री अवंती पार्श्वनाथ स्तवनं ।।

उपरोक्त ऐतिहासिक स्तवन आचार्य कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा की प्रति संख्या 68004 पृष्ठ सं. 19 से प्राप्त हुआ है। प्रति उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमंदिर कोबा का हार्दिक आभार।

||चिंतामणि मारी चिंता चूर||

आणि मन शुद्ध आस्था ,देव जुहारु शाश्वता
पार्श्वनाथ मन वांछित पुर
चिंतामणि मारी चिंता चूर,शंखेश्वर दादा मारी चिंता चूर….

अणियाली थारी आँखड़ी
जाणे कामलतणी पांखडी
मुख दीठा दुःख जावे दूर
चिंतामणि मारी………

को केहने को केहने नमे ,
मारा मन मा तुही गमे
सदा जुहरु उगते सुर ….
चिंतामणि मारी…….

बिछड़िया बालेसर बेल,
वैरी दुश्मन पाछा भेल
तू छे मारा हाज़रा हुज़ूर
चिंतामणि मारी……

यह स्तोत्र जो मनमें धरे
तेहनो काज सदाई सरे
आधी व्याधि सब जावे दूर
चिंतामणि मारी…….

मुझ मन लागि तुमसु प्रीत
दुझो कोई न आवे चित्त
कर मुझ तेज प्रताप प्रचुर
चिन्तामणि मारी…….

भवो भव देजो तुम पद सेव
श्री चिंतामणि अरिहंत देव
समय सुन्दर कहे गुण भरपूर
चिन्तामणि मारी………

चालीसा

श्री अवन्तिपार्श्वनाथ तीर्थ चालीसा

दोहा

सुमिरण कर प्रभु पार्श्व का, तीर्थ अवन्ति धाम।
चालीसा रचना करूँ, पूरण वांछित काम।।
पार्श्व अवन्ति नाम से, होय रोग भव दूर।
करे जाप श्रद्धा भरी, कर्म होय चकचूर।।
विद्युत् स्तंभन सर्वदा, जपत मंत्र सुखकार।
आधि व्याधि का नाश हो, होय समाधि सार।।

चौपाई

तीर्थ अवन्ति पारसनाथा। जोडू हाथ नमावु माथा।।1।।
आर्य सुहस्ति करत विहारा। पुर उज्जयिनी स्वागत न्यारा।।2।।
शय्यातर भद्रा सेठानी। अयवन्ति सुकुमाल कहानी।।3।।
नलिनी गुल्म सुर लोक विवेचन। सुनि पुनि पावे जाति सुमिरण।।4।।
मुझको पाना देवविमाना। ले संयम पहुँचे शमसाना।।5।।
करत तिहां उपसर्ग श्रृगाला। पीवत मुनि समता रस प्याला।।6।।
पावत नलिनी गुल्म विमाना। जीवन सफलो सोलह आना।।7।।
महाकाल तस मुनि सुत नामा। जिन मंदिर रचना हित कामा।।8।।
पार्श्व अवन्ति बिम्ब भरावे। सुर सुरपति जस महिमा गावे।।9।।
काल योग तिमा भंडारी। ऊपर पूजे शिवलिंग भारी।।1011
सिद्धसेन आचार्य दिवाकर। पंडित ज्ञान गुणों के सागर।।11।।
सूरि पधारे शिव देवालय। देव तरफ धरि पग हो निर्भय।।12।।
राजेश्वर विक्रम तिहां आवे। जोय दृश्य कोडे बरसावे।।13।।
सिद्धसूरि मोहक मुसकावे। विक्रम देख अचंभो पावे।।14।।
कर जोडी विनवे नृप विक्रम। करो प्रार्थना हे ऋषि उत्तम।।15।।
सह पायेंगे स्वर मेरे ना। दोष नहीं फिर मुझको देना।।16।।
दिव्य ध्वनि गुरुवर की गूंजी। पूर्ण लगी भक्ति की पूंजी।।17।।
स्तुति कल्याण मंदिर की प्यारी। अचरिज पावे सहु नरनारी।।18।।
अतुलित मंत्र शक्ति तिहां प्रगटे। भूत प्रेत दानव सब विघटे।।19।।
कड कड तड तड फट शिवलिंगा। दिव्य मूर्ति प्रगटे नरसिंगा।।20।।
चमत्कार देखी सिर डोले। जय हो जय हो जय सब बोले।।21।।
सिद्धसेन के सिद्ध मंत्र से। प्रगटे पारसनाथ यंत्र से।।22।।
वो ही मूरत पार्श्व अवन्ति। सच्ची घटना ना किंवदन्ति।।23।।
विक्रम नरपति श्रावक होवे। शासन माला मोती पोवे।।24।।
तीर्थोद्धार हुआ है भारी। नव प्रासाद नयन सुखकारी।।25।।
स्तंभ शिखर ददरी नव जाली। पेखत सुर तणी वाढत ताली।।26।।
मंडप रंग उत्तंग विशाला। और कहीं ना देखा भाला।।27।।
ॐ हीं पार्श्व अवन्ति जपना। सपने अपने पूरे करना।।28।।
पार्श्व अवन्ति महिमा भारी। पूजक हो जाते भव पारी।।29।।
लब्धि सिद्धि का लहे खजाना। सो नर पावत संपत्ति नाना।।30।।
चमत्कार सपने में पावे। ऋद्धि वृद्धि कल्याण रचावे।।31।।
सोहे निशि नभ पूनम चंदा। त्यों पारस प्रभु आनंद कंदा।।32।।
अर्पण तुझ चरणों में प्राणा। पालूं जीवन भर तुझ आणा।।33।।
परतिख है पद्मावती माता। भक्तों को नित देती शाता।।34।।
संवत् दोय सहस पिचहत्तर। माघ सुढ़ि चउदस दिन सुखकर।।35।।
तीर्थ प्रतिष्ठा मंगलकारी। फैला जग में सुयश अपारी।।36।।
सुविहित गणनायक सुखसागर। श्री जिनशासन गच्छ दिवाकर।।37।।
कान्ति सूरि आशीष महाना। पूरण होत सकल अरमाना।।38।।
सूरि मणिप्रभ मंगल भावे। श्रद्धा से चालीसा गावे।।39।।
चालीसा यह मंगलकारी। कामितपूरण दुःख निवारी।।40।।

दोहा

चालीसा जो नित जपे, धरि प्रभु पारस ध्यान।
जीवन में शान्ति लहे. पावे सकल निधान।।
उज्जयिनी रचना करे, मणिप्रभ श्रद्धा धार।
अवन्ति के सानिध्य में, घर घर मंगलाचार।।

रचनाकार
गच्छाधिपति आचार्यदेव
श्री जिनमणिप्रभसूरिजी